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Anubhi Maheshwari

Others

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Anubhi Maheshwari

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बेटी के मन के भाव

बेटी के मन के भाव

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आ गया दिन मेरी विदाई का,

मां बाबुल छुप छुप के व्याकुल होते हैं, 

जिनकी उंगली पकड़कर मैंने चलना सीखा,

जीवन सुखमय रहे यही मनोभाव लेकर ,

आज वे बेटी को दूसरे के हाथ में सौंपते हैं।


लाडली के बचपन की एक एक बात, 

याद उन्हें तड़पाती है।

अपने आंगन की फुलवारी को,

सदैव फूलों की तरह खिलती रहे,

इसी भावना से दूसरे के हाथ में सौंपते हैं।


एक पल भी अपनी आंखों से ओझल,

जो सहन नहीं कर पाते थे,

चिड़िया बन उड़ जाएगी बेटी को,

याद बहुत तड़पाएगी,

अपनी लाडली को दूसरे के हाथ में सौंपते हैं।


बेटी को शिक्षा दीक्षा देकर,

इस काबिल बनाया है,

संस्कारों का पाठ पढ़ा कर ,

गृहस्थ जीवन खुशहाल रहे,

यही आशा और कामना से बेटी को, 

दूसरे के हाथ में सौंपते हैं।


मां के आंचल और पिता के साए में, 

बेफिक्र होकर फुदकती थी,

रिश्तों में शीतल छांव बन कर रहना, 

अब पति के घर में ही खुशहाल रहो, 

यही सोचकर दूसरे के हाथ में सौंपते हैं।


भाई बहन सहेलियों के साथ

जो खेलती थी ,

एक पल में सब को छोड़कर,

अपने पिया के घर में बिटिया के

चेहरे पर सदैव मुस्कान रहे,

यही संकल्प ले दूसरे के हाथ में सौंपते हैं।


हे विधाता ! क्या सोचकर,

यह विधान बनाया है,

हर बेटी को अपना घर छोड़कर दूसरे का घर महकाना है, 

अनजानों के बीच रहकर प्यार से सबको अपना बना के,

यह आशा से दूसरों के हाथ में सौंपते हैं।


बेटी के मां बाप से बढ़कर,

इस जग में कोई नहीं।

रामायण में राजा दशरथजी ने भी,

जनक जी को महान बताया है,

दूर रह कर हर समय माँ बाप के

मंगल की ही कामना करती,

अपने कलेजे के टुकड़े को,

 दूसरे के हाथ में सौंपते हैं।


उनकी एक ही चाहत है रहती,

अपने नये घर में बेटी सम्मान पाये, 

उसको कभी ना कोई कष्ट आए,

इसी विश्वास और मंगल आशीष के साथ,

अपनी गुड़िया को दूसरे के हाथ में सौंपते हैं।



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