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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Classics Inspirational Others

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Classics Inspirational Others

जीवन : एक सफर

जीवन : एक सफर

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🌼 जीवन : एक सफर 🌼
(एक आध्यात्मिक, दार्शनिक, अलंकारिक काव्य )
 ✍️ श्री हरि
31.7.2025

 जीवन — एक नदी है,
जो हिमगिरि की गोद से निकलती है मौन,
फिर कल-कल, छल-छल,
गति-तरंगों में गाती है,
पर्वतों से टकराकर भी मुस्कराती है,
और समंदर की बाँहों में समर्पण बन जाती है।

 जीवन — एक झरना है,
जो पहाड़ी पत्थरों को चूमते हुए उतरता है नीचे,
कभी रागिनी-सा, कभी अरण्य-सा उन्मुक्त,
कभी बूँद-बूँद में इंद्रधनुष रचता हुआ,
तो कभी मिट्टी में खोकर भी गंध छोड़ता हुआ।

 जीवन — पवन है,
जो साथ लाता है फूलों की गंध,
प्रिय की साँसों-सा कोमल,
और कभी रणभूमि में शंखनाद-सा प्रचंड।
वह न दिखता है,
पर हर पत्ता उसी से थिरकता है।

 जीवन — सूर्य की पहली किरण है,
जो अंधकार के आँचल को धीरे से हटाती है,
और नवल प्रभात की गोद में
चेतना की पहली लोरी गुनगुनाती है।
वह तप है, प्रकाश है,
और ऊर्जा का ब्रह्म-स्नान है।

 जीवन — चाँदनी की शीतल मुस्कान है,
जो प्रेमिका की चुप्पी में उतरती है,
सजल नयन और कोमल अधरों के बीच,
कभी श्रृंगार की आभा,
तो कभी विरह की मौन वाणी बन जाती है।

 जीवन — तारा है,
जो अंधेरी रातों में पथ दिखाता है,
कभी टूटकर भी
दूसरों की अभिलाषा को संजोता है,
और आकाश के विशाल वितान पर
एक नन्हा दीप बनकर झिलमिलाता है।

 जीवन — श्रीकृष्ण की बांसुरी है,
जो गोकुल की गलियों में रास रचाती है,
गोपियों के हृदय में प्रेम जगाती है,
और रणभूमि में बन जाती है
पाँचजन्य का मृदुल घोष —
धर्म की उद्घोषणा!

 जीवन — शिशु की किलकारी है,
जो नव-सृष्टि की घोषणा है,
माँ की ममता में लोरी है,
पिता की छाया में विश्वास है,
और हर घर का ईश्वर है।

 जीवन — श्रमिक का पसीना है,
जो धरती को सींचता है,
हल की धार में स्वप्न बोता है,
और रोटी की हर गंध में
अपने श्रम की तपस्या गूँथता है।

 जीवन — श्रृंगार की आभा है,
केशों में गूँथा गजरा,
नयनों में बसी शृंगार-लता,
और कंठहार में बंधी
मन की मधुर कामना।

 जीवन — अश्वों की हिनहिनाहट है,
जो युद्ध से पहले साहस की पुकार है,
प्रत्यंचा की टंकार है,
और एक युग धर्म का आह्वान।

 जीवन — सुगंध है,
जो माटी में, स्मृति में, प्रीति में बसी है,
जो न दिखाई दे, पर हर साँस में महके —
जैसे आत्मा में बसा हुआ कोई अनुभव
जो अमर है, अपार है।

 🔱 अंतिम श्लोक : जीवन का दिव्य सार

जीवन न थकता है, न रुकता है,
वह समय की तरह नित्य गतिशील है —
हर क्षण, हर स्पंदन, हर लय में संजीवनी-सी धड़कन।
वह सृष्टि है, दृष्टि है,
और परम सत्ता का अनंत उत्सव।     


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