STORYMIRROR

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Inspirational

3  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Inspirational

जीरों से बन रही गिनतियां हैं

जीरों से बन रही गिनतियां हैं

1 min
265

कहां उठी है रण में तलवार,

कहां दुखी है जग में भगवान।

वीरों को ठग रही नीतियां हैं,

जीरो से बन रही गिनतियां हैं।

कितनों में देख लिया साहस,

कहां लड़ी जंग में लड़ाईयां हैं।

मंच लगाये बैठे हैं सत्ता को खैरात लुटाने को,

कहां खुश होता आत्मदाह बैसाखी मनाने को।

यहां वहां की अठखेलियां सुनाते हैं,

खुद नहीं बदले बदलते जमाने को हैं।

देखो यही चीत्कार हमारी व्यथा है,

शहीदों को समर्पित हमारी कविता है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational