झूठ
झूठ
आज तू नज़रों से नज़रे
नहीं मिला रही थी
ज़बान तेरी बार-बार
हकला रही थी
टाँगे लड़खड़ा रही थी
लंगड़ा रही थी
जरा बौखला रही थी
बातों को तू हवा में
पहले घूमा रही थी
फिर उड़ा रही थी
एक बार पहले देख तो लेती
वो माँ थी
जिसको झूठ तू सुना रही थी।।
