चार दिन की चांदनी पांचवी रात
चार दिन की चांदनी पांचवी रात
चार दिन की चांदनी
पांचवी रात अंधेरी
जितनी हैं जल्दी मुझे
उतनी ही हो रहीं देरी
चलते चलते थक गया हूँ
मंजिल को हैं लेकिन दूरी
रात को आंखे लाल थी
सुबह वापस हो गयी भूरी
आंखों में आंसू भरे पड़े हैं
लेकिन मेरा चुप रहना ही जरूरी
दिल उदास हो भी न तो कैसे
दस्ताये इश्क़ एक बार फिर रह गयी थी अधूरी
हार चुका हूं वैसे तो
हिम्मत फिर भी बची हैं पूरी
दूर जाने में मुझसे
ही दिख रही मुझे खुशी तेरी
और मान या न मान
तेरी खुशी में ही खुशी मेरी
जितनी हैं जल्दी मुझे
उतनी ही हो रही देरी
और इसी तरह चार दिन की चांदनी के बाद
मेरी पांचवी रात फिर रह गयी अंधेरी ?
