Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"झुका दे अम्बर"

"झुका दे अम्बर"

2 mins
255


लगातार तू अपना कर्म नर

फिर झुका दे,तू चाहे अम्बर


किसी से भी कदापि न डर

खुद को बना तू,इतना निड़र


अपने लक्ष्य पर रख नजर

लगातार तू अपना कर्म कर


बन जा तू ऐसा शजर,नर

हरस्थिति में ऊंचा रखे,सर


तू चल बैसाखियां तोड़कर

जरूर मिलेगा,मंजिल घर


अपने हौंसलों से उड़ान भर

फिर झुका दे,तू चाहे अम्बर


खुद में वो आत्मविश्वास भर

महक उठे शूल,फूल बनकर


बना अपनी वो,मासूम नजर

फूल को भी न चुभे तेरी नजर


ऐसी अग्नि उत्पन्न कर,तू भीतर

मिट जाये सारा तम दरिया भर


लगातार तू अपना कर्म कर

फिर झुका दे,तू चाहे,अम्बर


ऐसी कोशिशें कर निरन्तर

मंजिल खुद आये,दौड़कर


खुद को बना ले,ऐसा नर

बहा दे,तू नीर पत्थर पर


किसी की तू नकल न कर

चलता चल,तू अपनी डगर


वो पौधा बनता,बड़ा शजर

जो सह लेता है,जग ठोकर


जो रखते है,मजबूत जिगर

वो बदल देते,अपना मुकद्दर


लगातार तू अपना कर्म कर

फिर झुका दे,तू चाहे अम्बर


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational