जब मैंने किसी खास को खोया
जब मैंने किसी खास को खोया
हर जगह सिर्फ अंधेरा ही था छाया,
ऐसा लगा जैसे अलग हो रही हो रूह से काया।
मुझसे दूर होते वक्त क्या दिल तेरा नहीं रोया,
अब तुझे क्या पता कि मैंने खोया क्या पाया।
तुझ में मेरी जान और पूरा संसार था समाया,
अफसोस हुआ दिल को, कि तू कैसे न समझ पाया।
तुझसे रूठी कभी तो तूने कभी न मनाया,
खुद को दी सज़ा और खुद ही खुद को समझाया।
साथ ही नहीं जब लिखा तो क्यों रब ने मिलाया,
फिर क्यों सब जानकर भी मुझे प्यार का एहसास दिलाया।
क्यों वफ़ा के नाम पर मुझे बेघर कराया,
क्यों उन बातों - वादों से मेरा यकीन बनाया।
अब तो मैंने खुशी, चैन, प्यार सब कुछ गंवाया,
मेरी भूल थी जो मैंने तुझे अपना बनाया।
ना तुझे बल्की तेरी यादों को भी था मैंने भुलाया,
न जाने क्यों फिर भी मेरे अश्कों में सिर्फ तू नज़र आया।
मुझ बेहोश को तो तब होश आया
जब विरान राहों से नज़रें मिलाया।
खुद को मैंने बहुत अकेला पाया,
जब मैंने किसी खास को खोया।
