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स्वतंत्र लेखनी

Inspirational Others

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स्वतंत्र लेखनी

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जब देखती हूँ जीवन को

जब देखती हूँ जीवन को

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मैं पराजित नहीं हूँ,

मैं खंडित भी नहीं हूँ,

मैं भ्रम से बाहर हूँ,

मैं स्थिर भी नहीं हूँ।

हाँ थोड़ी बिखरी जरूर हूँ,

मायूस भी हूँ,

क्योंकि ये संघर्ष यात्रा यहीं खत्म नहीं होती,

रास्ते बढ़ते चले जाते हैं,

मोड़ मिलते जाते हैं,

और मैं वहीं टकराकर गिर पड़ती हूँ,

और ऐसे गिरकर मैं बिखर जाती हूँ।

फिर क्रम शुरू होता है,

खुद के हर टुकड़े को बटोरने का,

एक टुकड़ा साहस का होता है,

एक आत्मविश्वास का,

एक सकारात्मकता की किरणों का,

और एक ताकत का।

इन टुकड़ों को जोड़कर मैं फिर से खड़ी होती हूँ,

फिर से चलना शुरू करती हूँ,

और फिर से देखती हूँ जीवन को,

एक नए दृष्टिकोण से।


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