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विजय बागची

Tragedy Inspirational

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विजय बागची

Tragedy Inspirational

जैसे कुछ हुआ ही नहीं

जैसे कुछ हुआ ही नहीं

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हवायें जैसे सूख गयीं,

पास आने से रूठ गयीं,

मैं फिर भी यूं ही सोता ही रहा,

जैसे कुछ हुआ ही नहीं।


मंज़िल पीछे छूट गये,

वक़्त के पहिये टूट गये,

मैं फिर भी यूं ही खोता ही रहा,

जैसे कुछ हुआ ही नहीं।


भौरों का आना कम हो गया,

कलियों का न खिलना, ग़म हो गया,

मैं फिर भी ख़्वाब संजोता ही रहा,

जैसे कुछ हुआ ही नहीं।


बादल-बिजली आ न सके,

बारिश-वर्षा ला न सके,

मैं फिर भी फसलें बोता ही रहा,

जैसे कुछ हुआ ही नहीं।



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