जायज़
जायज़
लोग कहते हैं
लोगों का काम है कहना
मुझे तो बस तुम संग रहना
न मानूँ मैं धर्म कर्म,
न रीति न रिवाज
मैं तो चाहूँ साजन तुझसे
बस सच्चा सा प्यार।
न हो कोई स्वार्थ जहाँ
न आडम्बर का फेर
कोई स्वीकार करे या न करे
हम तो तेरे ही हुए
न बाजा न बारात साजन
न दुल्हन बनी तो क्या!
न हुए सात फेरे तो क्या !
बिन फेरे हम तेरे हुए
दुनिया चाहे कुछ भी कहे
मुझे यही जायज़ लगे।