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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

जाओ अब

जाओ अब

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रोना भी नहीं आ रहा 

दर्द खो गया

ढूंढ कर देखा कोना कोना

टटोल कर झाड़ कर

बाकी कुछ न रहा।


घूरती छत,

चार दीवारों का साथ

धीरे धीरे गहराती रात

ख़ामोश होती सिसकियां

यूं ही सब खत्म होता।


सब्र का विस्तार

जो था तारों के पार ,

सिकुड़ कर आंगन में आ गया।

सामने नहीं अब कोई भी ,

तुम भी चले जाओ।



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