जाने कब से
जाने कब से


बहुत दिनों से
लड़े नहीं हम
जाने कबसे
एक-दूसरे के ख़िलाफ़
हुए खड़े नहीं हम
बहुत दिनों से
लड़े नहीं हम
वादियों में गूंज रही
इन अदाओं को कहो
थोड़ा और सब्र करें
मेरी बुराइयों के
बारे में थोड़ी और
राय कायम करें
फिर वो करें
जो करना है इन्हें
महकाना है तेरे दामन को
यह बहकाना है तुम्हें
आगे तो बढ़ गए है
लेकिन कभी
एक-दूसरे के लिए
मुड़े नहीं है हम
जाने कब से
लड़े नहीं है हम
उन विचारों की गठरी को
कहीं दूर फेंक आना
जो तुम्हें मेरी ओर
लुभाते आये है
या जिन्होंने तुम्हें
मेरे होने के वज़ूद से
नवाज़ रखा है अब तक
तुम्हारी इसी मुस्कुराहट
के लिए
छला है मैंने खुद को
और तुमने तुमको
जाने कब से
एक-दूसरे को देख
डटे नहीं है हम
जाने कब से
एक-दूसरे से
लड़े नहीं है हम