जादूई रसोई
जादूई रसोई
जैसे सुबह होती और शाम है ढलती,
वैसे मेरी रसोई रोज़ है रंग बदलती।
सुबह वो बिखरे खुशबू अदरक की,
जब जब है वो चाय में उबलती।
फिर छिड़के घर में सुगंध हींग का,
जब भी कोई लगाता है उसका घी में तड़का।
राई जीरा जब छट पटा जाएं,
उसके स्वाद का क्या कहें? आय हाए!
कभी बने रसोई में दक्षिणी इडली डोसा,
फिर कभी बंता चटपटी चटनी और समोसा।
बच्चों के पसंद की इटेलियन और चायनीस,
जिसमें डलता है सौस और ढ़ेर सारा चीज़।
बड़े बुजुर्ग तो दाल चावल चाहें,
जवान पीढ़ी को तो ये बिलकुल न भाए।
अगर बने बड़ों के लिए दाल बांटी चूरमा,
बच्चों के लिए जरूर बनता चावल और राजमां।
मीठें में भी पसंद मिलती नहीं कभी,
किसी को रबड़ चाहिए तो किसी को खीर।
रसोई मेरी जाने सब का स्वाद है अलग,
तभी तो है छुपाती ये राज़ गज़ब।
रंगीन मसालों में है घुल कर बैठी,
उसकी जादू की चमत्कारी शक्ति।
शिकायत रहते हुए भी खुश है हर कोई,
ऐसी अनमोल है मेरी जादूई रसोई।