पिंजरे के कैदियों से पूछो
पिंजरे के कैदियों से पूछो
भार बहुत है इसका ये सामान उतारो,
मेरे सर से तुम अपना एहसान उतारो,
मुझको सूरज फ़लक पे अब बर्दाश्त नहीं है,
जुगनू ने भेजा है ये फ़रमान, उतारो,
ख़्वाहिश अपनी पहन के अन्दर आ सकते हो,
शर्त ये है बाहर अपना ईमान उतारो,
सच्ची इज़्ज़त पानी है तो इतना कर लो,
ओढी है जो तुमने झूठी शान उतारो,
मैं थोङा ऊपर आने को राज़ी हूँ पर,
ख़ुद को भी कुछ नीचे मेरी जान उतारो,
फिर से एक किताब लाज़िमी है दुनिया को,
अब की बार मगर थोङी आसान उतारो,
साहब तुमको बात हमारी सुननी है तो,
नाक से थोङा नीचे अपने कान उतारो,
गूलामी की जिंदगी कभी भी अच्छी नहीं
पूछना है गर ' कुमार' पिंजरे के कैदियों से पूछो।