जादू
जादू
जादू -जादू क्या है जादू ?
या फिर ये कहें कि क्या-क्या नहीं है जादू ?
पृथ्वी के कण-कण, कोशे-कोशे में विद्यमान है जादू,
बंद आंखों से आंखें खुलने तक का सफर है जादू।
पृथ्वी की प्रत्येक रचना –संरचना नीहित है जादू से,
भरा है जीवन का प्रत्येक लम्हा और कण-कण जादू से।
जैसे एक गूंगे-बहरे व्यक्ति के लिए तो ध्वनि व आवाज़ हैं जादू,
वैसे ही एक प्रेमी के लिए सजनी के नेत्रों का आकर्षण ही कर देता जादू।
कभी किसी हस्ती के साथ, कभी किसी हसीं के साथ, मिले जो एक पल अपनों के साथ,
उस पल का हर लम्हा है जादू,जो बन जाता सुखद एहसास।
मनोकामना का पूर्ण होना है जादू, किसी से मन लगना है जादू,
एक बीमार व्यक्ति के लिए तो औषधि और प्रार्थनाएँ ही हैं जादू।
कभी अपने में समाया ये जहां, कभी सिर्फ सपने में बस गया,
कभी न पूरी हो अज़ीज़ फिर भी, ये चाहत ,ये प्रेम ही जादू हो गया।
सब कुछ पा कर भी और पाने की चाह, किसी जादू के हो जाने की ख़्वाहिश है जादू,
चाह से आह का और आह से वाह तक का सफर है जादू।
कभी अकेलापन सताये तो अपनों का साथ ही है जादू,
एक संगीतकार के लिए संगीत, तो एक आहत मन के लिए खुशियाँ ही हैं जादू।
एक गायक का मधुर संगीत क्या किसी जादू से कम है,
जादू है उस की ज़िंदगी जिसमें ना कोई तकलीफ़ ना गम है।
कभी करोड़ों में एक बन इतराना, कभी अकेले में मुस्कराना,
यही तो जादू है जिंदगी में, यहीं तो जिंदगानी में भी जादू है।
जिसको मिल गया जन्म मानव –योनि में,
उसकी तो सम्पूर्ण ज़िंदगानी ही जादू है।