इज़्ज़त
इज़्ज़त
हर कदम पर दाँव पे लगी हैं उसकी इज्जत,
जन्म से ही होती हैं शुरू उसकी रखवाली,
स्कूल से लेकर कॉलेज तक फिर नौकरी पर
हर जगह पर हर मोड़ पर रखनी पड़ती हैं
उसको संभाल के उसकी इज़्ज़त,
कुछ न करो कही न जाओ घर पर ही रहो
तो कई बार अपने ही करते हैं रिश्ते को बदनाम
और फिर उतरती है उसकी इज़्ज़त,
कभी प्यार के नाम तो कभी डर के नाम
कभी मज़बूरी के नाम उतरती हैं उसकी इज़्ज़त
सोच समाज की हैं कुछ ऐसी छोटे कपडे हैं वजह
इसलिए उतरती हैं उसकी इज़्ज़त,
आठ साल की बच्ची को कहा पहनाते वो साड़ी
फिर भी कहते हैं नजर नहीं मर्द की कपडे हैं जिम्मेदार औरत के इसलिए उतरती हैं उसकी इज़्ज़त,
नहीं आनेवाले कोई कृष्ण बचाने इसबार
करनी हैं उसे और हमे ही रक्षा इज़्ज़त की
जब जब उतरेगी उसकी इज़्ज़त,
अब और नहीं देखा जाता हैं यह पाप
बनाओ ऐसा कानून काटा जाये उसका वो हथियार
जिससे उतारते हैं वो उसकी इज़्ज़त
और फिर एक बार उतरती हैं उसकी इज़्ज़त,
कुछ सालो की जेल और फांसी बस इतनी सी सजा है
इस गुनाह की क्यो? क्या इतनी सस्ती हैं?उसकी इज़्ज़त।
