इतवार
इतवार
फ़िर एक और इतवार आया,
ज़हन में आयी नई कहानी है
डूब गए कुछ कश्ती काग़ज़ के
यहां हर आंख में इतना पानी है
बीत गया वो कल में सबके
पर याद रहा कुछ ज़ुबानी है
खूबसूरत सा था लम्हा वो
उस लम्हे से प्रीत पुरानी है
दिन गुज़रे महीने बीते
सालों संग उमर बितानी है
उसी प्रेम के पथ पर जैसे
इक राधा कोई दीवानी है
डूब गए कुछ कश्ती काग़ज़ के
यहां हर आंख में इतना पानी है
हर मन में है कुछ टूटे ख़्वाब
और साँसों में मद्धम रवानी है