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Aarti Sirsat

Abstract

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Aarti Sirsat

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"दिल की दवा का मैं क्या करूँ"

"दिल की दवा का मैं क्या करूँ"

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"दिल की दवा का मैं क्या करूँ"

घुल रही है चारों तरफ


उस जहरीली हवा का मैं क्या करूँ...

मौहब्बत हो गई है दर्दो से,

अब दिल कि दवा का मैं क्या करूँ... 


उलझी पड़ी है 

जीवन की हर राह...

खुद को सुलझाकर

मैं क्या करूँ...


हमें तो बस एक ही किताब

पसंद है जो हमनें लिखी है...

औरों की लिखी किताब 

पढ़कर भला मैं क्या करूँ...


मौहब्बत हो गई है दर्दो से,

अब दिल कि दवा का मैं क्या करूँ... 


तन्हाई ने खामोशी से 

दोस्ती कर ली है...

खमोश जुबां का 

अब मैं क्या करूँ...


गजब का मशवरा दिया

करते है कुछ लोग हमें...

हर किसी की फरमाइश

पूरी करके मैं क्या करूँ...


मौहब्बत हो गई है दर्दो से,

अब दिल कि दवा का मैं क्या करूँ... 


कुछ कहें बिना ही

पढ़ ली है तुम्हारी जुबां...

अब तुम्हारी झूठी 

बातों का मैं क्या करूँ...


खाली पढ़ी है अब तो 

हर शहर की गलियां...

तुम्हारे बिना इस संसार 

का अब मैं क्या करूँ...


मौहब्बत हो गई है दर्दो से,

अब दिल कि दवा का मैं क्या करूँ!

  


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