इश्क़ की तरफदारी
इश्क़ की तरफदारी
वो मोहब्बत की गलियों में मशहूर थे
हम एकतरफा इश्क़ में मसरूफ थे ...
वो दोतरफा प्यार में मरना चाहते थे
हम उस एकतरफा इश्क़ को जीना चाहते थे
वो इश्क़ की राह पर बढ़ रहे थे
मगर उन्हें क्या पता
कि वो हमारी मंज़िल थे
वो अपने चर्चों के आदि थे
हम अपनी गुमनामी में खुश थे
वो मोहब्बत की गलियों में मशहूर थे
हम एकतरफा इश्क़ में मसरूफ थे
वो उन गलियों की महक से
प्यार किया करते थे
उनके नाम किया था जो
हम उस गुलाब पर जान दिया करते थे
हमने भी सुने उनके कई हिस्से थे
उनसे जुड़े , हमारी ज़िंदगी के कई हिस
्से थे
वो प्यार वापिस पाने की शर्त रखते थे
हम बेशर्ते प्यार उन्हीं से करते थे
वो मोहब्बत की गलियों में मशहूर थे
हम एकतरफा इश्क़ में मसरूफ थे ...
नजाने, उनकी प्यार की फेहरिस्त में
हम कौन सी जगह रखते थे
मगर यकीनन , वो हमारी
पहली और आखिरी इबादत हुआ करते थे
वो नजाने कितनों के करीब थे
और हम,
अपनी हकीकत से भी दूर थे
वो मोहब्बत के जाम चख रहे थे
हम अपनी इबादत के नशे में चूर थे...
वो मोहब्बत की गलियों में मशहूर थे
हम एकतरफा इश्क़ में मसरूफ थे ...