इश्क
इश्क


सावन सामने बरसा मगर
प्यास दिल की तो बुझाया भी नहीं
वो ऐसा बादल है कि जिसका
कोई साया भी नहीं।
क्यूँ हो गयी खफा
बिन बात ही बदली
यहीं बरसे और
दामन को भिगाया भी नहीं।
तेरी आँखों ने बहुत कुछ कहा हमसे
पास तूने मगर बुलाया तो नहींं
ना जाने क्यों तेरी
यादों के साथ याद आता है
वो नगमा जो कभी तूने सुनाया भी नहीं।
हम तो शायर थे
फिर भी दिले आरजु को,
कभी लफ्ज़ों में फरमाया भी नहीं
वो तो कुछ खास थे ऐसे
कि इश्क भी किया और जताया भी नहीं।