हम लिख देते हैं जाने क्यों
हम लिख देते हैं जाने क्यों
हम लिख देते हैं जाने क्यों
हर शख्स को अपनी बातों में
कुछ अनसुलझी मुलाकातों के
हर पल अपने जज्बातों में।
एक बार जो कागज़ पर बिखरे
वो पल स्याही की बूंदों से
दिल के कोने से फिसल गए
जैसे सपने गहरी नींदों के।
वो बातें जो न कही गई
बेमतलब के अलफाज़ों में
अब भी यादें ताज़ा करती हैं
कुछ पहचानी सी साज़ों में।
वो अब भी उठाया करती हैं
आधे चाँद की रातों में
कुछ कहा सुनाया करती हैं
खट्टी मीठी सी बातों में।
वो दर्द जगाया करती हैं
उन पर भी कुछ लिख जाने को
हर बार ही कुछ बच जाता है
उस चँदा को बतलाने के।
मेरे गम सारे बह जाते हैं
दो बूँद कलम की स्याही मेंं
कुछ खुशियाँ मुझे बहलाती हैं
स्याह रात की प्याली में।