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Nidhi 'Vrishti'

Abstract

4.8  

Nidhi 'Vrishti'

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तेरी कहानियाँ

तेरी कहानियाँ

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अच्छा लगता है मुझे सुनना कहानियाँ 

कभी कभी दूसरों तो कभी अपनों की ज़बानियाँ 

किसी के मोहब्बत के किस्से 

तो किसी के बचपन की मनमानियाँ। 


अच्छा लगता है मुझे अजनबी चेहरों को पढ़ना 

अनजानी अनकही सी बातोंं से 

उनकी कहानियाँ गढ़ना 

शायद इसिलिए तुझे भी पढ़ा होगा मैंने,

 

तेरे चेहरे का बचपना और

मन की मासूमियत देख कर 

कुछ तो गढ़ा होगा मैंने 

तभी तो बेपरवाह पूछ बैठी थी 

सुनना जो चाहती थी तेरी कहानियाँ। 


वो कहानियाँ जो कैद थीं कहीं 

जो शायद, तूने बहुत कम लोगों से थी कही

जिसे कहने में तुम शायद आज भी घबराते हो 

या जान बूझ कर यूँ बातें छिपाते हो 

वो कहानियाँ जो आज भी एक बड़े किस्से से का 

बस पचास प्रतीशत है।

 

वो कहानियाँ जिन्हे ना बोलना 

ना जाने कैसी ज़िद, या कैसी आदत है 

वो अकेलापन जिसे न जाने क्यूँ

तुम अपनी ताकत कहते हो 

अपने गानों के साथ किसी और ही धुन में रहते हो 

मगर फिर भी पास होते हो

जब मैं अकेली होती हूँ।

 

या जब ज़िन्दगी से घबराकर,

तेरे कंधे पे रोती हूँ मेरे हर बड़े किस्से को,

अपने उस एक किस्से का 

एक छोटा सा हिस्सा बताते हो 

शायद बहुत कुछ देखा है तुमने पर 

चेहरे पर कभी नहीं जताते हो। 


याद है ना 

पसंद है मुझे सुनना कहनियाँ 

और एक बार तो सुनूँगी 

तेरी कहानी, तेरी ही ज़बानियाँ 

फिर जोडूँगी उन्हें, तुझे वापस से पढ़ने को 

एक बार वापस से, तेरी असल तस्वीर गढ़ने को।   


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