इश्क से इश्क तक
इश्क से इश्क तक
तुम हुशन में लाजवाब हो
कोई चमकता आफताब हो
हो तराशी सी कोई मूरत
तुम कामदेव का बाण हो
तुम ख्वाब हो मेरे प्यार का
तुम शराब हो मेरी प्यास का
तुम अंगूर का हो पानी जी
तुम हो दहकता विचार सा
तुम सर से लेकर पैर तक
सिर्फ हुशन हो सिर्फ इश्क हो
तुम हो प्यार की प्रकाष्ठा
तुम काम की हो नयी गज़ल
मैं मचलता हूँ तुम्हें पाने को
भर बाहों में बहक जाने को
है ख्वाब लाली हटाने को
तुम्हे रोम रोम रिझाने को
कभी मिलों तो प्यास कम भी हो
इश्क में कोई रंज न हो
तुम मुझमें तो घुलो कभी
तुम मुझमें तो खुलो कभी
पार हो इश्क की हदें कभी
क्या सोचना कि क्या सही
एक ख्वाब हो सुबह का तुम
मेरे उखडी सांसों का पता हो तुम
मैं दरियां हूँ बिन दिशाओं का
मेरी मंजिल का पता हो तुम।