इश्क कम न होगा
इश्क कम न होगा


ये इश्क मेरा खत्म न होगा
बेशक मंजिलें एक न हो सकी
लेकिन ये इश्क कम न होगा।
तन्हा था मैं पहले अब तन्हा नहीं हूँ
माना आती नहीं है अब तू
पर मैं रहता आज भी उसी गली हूँ।
कुछ तो खास रहा होगा
जो बाकी मेरे अंदर आज भी
तेरे होने का एहसास रहा होगा।
कभी कभी थोड़ा बहक जाता हूँ
देख तेरी तस्वीर को
तेरी खातिर फिर से सम्हल जाता हूँ
मिलने का तुझसे कोई ख्वाब नहीं है।
तू तो मेरे ही अंदर रहती है
इसलिए बाकी कोई मलाल नहीं है
कैसे कह दूँ तू मेरे आस पास नहीं है।
तेरे न होने जैसी कोई बात नहीं है
तेरे होने न होने पर
ये कोई वाजिब सवाल नहीं है।
अक्सर तो तू चली आती है
मेरे अल्फाजों मे मेरे शब्दों में
तू ही तू तो नजर आती है
मेरी साँसों में मेरी रूह में।
तू शामिल है इस कदर कि
अंजान को और अंजान बनाती है।