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कुमार अविनाश (मुसाफिर इस दुनिया का )

Romance

5.0  

कुमार अविनाश (मुसाफिर इस दुनिया का )

Romance

इश्क़ की सजा

इश्क़ की सजा

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इश्क़ की सजा बस एक है ज़ालिम

तुझे याद करना रोना और तड़पना

मुद्दतों से जो पाप कर बैठा था

तेरी जुदाई ने हमें चकनाचूर कर दिया


अब आ रहा शायद मेरे दफ़न होने का वक्त

जो हर साया मुझसे जुदा हो चला

अब कैसे कहे किससे कहे हाल ए दिल अपना

एक महबूब था मेरा वो भी दूर हो गया


गलती बस एक थी हमारी

मुहब्बत बेइंतहा कर बैठा

अपनो ने कर दिया दूर उसे

झूठी शान की आन की ख़ातिर


अब तो सांसें चल रही हमारी

पर ज़िंदा नहीं हूँ कसम से

हैं कोई जो मिला दे मुझको मेरे सनम से

पर अब क्या हो सकता वो भी

किसी और का हमसाया हो गया


उसके लिए यकीनन मैं भी

शायद अब पराया हो गया

मार डाला कसम से

इस रीतिरिवाज के बंधन ने

अपनों ने ही तैयार किया

फांसी का फंदा मेरे जीवन में।


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