इश्क का पाठ और जवानी
इश्क का पाठ और जवानी
ये जवानी बात - बात पर तन जाती है,
और अक्सर अपनी ही दुश्मन बन जाती है।
इश्क का भूत जब इसके सर चढ़ जाये,
उफ्फ ! मत पूछो पागलपन कितना बढ़ जाये।
इश्क में डूबा दिल किसी की बात न माने
कौन दोस्त और कौन दुश्मन न पहचाने।
हर तरफ अंधेरा दिखता दुनिया वीरान सी दिखती है,
अपनी प्रेमिका के बिना हर सुबह शाम सी दिखती है।
बड़े अरमानों से आशिक प्यार की दुनिया सजाता है,
बस हुस्न की चाहत में सारी दुनिया भूल जाता है।
किसी की चाहत में खुद को इतना डुबोना अच्छा नहीं,
कभी-कभी दिल्लगी होती है वो... प्यार सच्चा नहीं।
दीवाने का तो दिल मृग-मारीचिका के पीछे भागता है,
दिन-रात उसी प्रेमिका के दीदार की दुआ माँगता है।
अपने आप को उस झूठे प्यार के पाश से,
निकाल नहीं पाता है,
और...एक दिन वो दीवाना इस,
जहाँ को छोड़ जाता है।