इस तन-मन पर इस जीवन पर
इस तन-मन पर इस जीवन पर
इस हृदय सिंधु में बसता है बस एक तुम्हारा प्यार प्रिये।
इस तन मन पर इस जीवन पर है तेरा ही अधिकार प्रिये।
जब आकर छेड़े पुरवाई,आँचल मेरा लहराता है।
तुम ही आए,तुम ही आए मन कानो में कह जाता है।
पर नहीं तुम्हे पाकर लगता,है जीवन मुझको भार प्रिये।
इस तन मन .....
जब मेघ गगन से झरता है,तारे सारे मुस्काते हैं।
तब प्रेम सिंधु में ज्वार कई,आ-आकर शोर मचाते हैं।
मैं हुई बावरी फिरती हूँ, और हँसता है संसार प्रिये।
इस तन मन.........।
आँखों से निंदिया रूठ गई,सपनो ने आना छोड़ दिया।
जब से छूटा है साथ तेरा,मन ने मुस्काना छोड़ दिया।
खुद मेरा मन कर जाता है,मुझसे रूखा व्यवहार प्रिये।
इस तन मन...........।
मैं गीत ग़ज़ल में ढल जाऊँ,अधरों पर मुझे सजा जाना।
मैं राह तकुंगी आजीवन, कभी प्रेम सुधा बरसा जाना।
क्यूँ नही समझ पाते मेरी अंतर की करुण पुकार प्रिये?
इस तन मन ..........।
दिन शेष बचे कुछ जीवन के,उसमे भी स्वप्न सजा बैठी।
इस बिरह अग्नि को मीत बना,मैं तन मन से लिपटा बैठी।
है बची हुई जो आशाएँ,कर दो उनको साकार प्रिये।
इस तन मन पर इस जीवन पर है तेरा ही अधिकार प्रिये।