इंसाफ
इंसाफ
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एक काली रात फिर है आई,
किसी की इज्जत पर फिर बन आई,
भागती फिरती बचाने खुद को,
आखिर लड़ कर क़ुरबा कर देती खुद को,
लाखों मोमबत्तियां याद में जली उसके,
इंसाफ के लिए शोर उठे चारों ओर,
दबा दिए गए सारे शोर ,
बुझा दी गयी सारी मोमबत्तियां,
जब न्याय नहीं मिला उसे किसी ओर।