हे गर्मी
हे गर्मी
सुख गई जिसकी आँखें,
खेतो को सींचेते सींचेते
कैसी ये गर्मी आयी,
जो पी गयी सभी के आँसुओं को
हुआ करती थी कही कभी बहाती हुई नदियाँ,
तरस गए वहा एक बूँद पानी को वही
आँखें दुख गयी आसमान की ओर देखते-देखते,
कोई तो बादल हो जो देख सके
इन आँखों में आँसुओं को
कहने को तो आसान है गर्मी के
मौसम मे बस आराम ही आराम है,
हालत देखों उन किसानों की,
जो सींचेते मिट्टी को अपने अशुओं से कभी
ना मिलता एक घुट पानी जिन जानवरो को,
पूछो उनसे क्या उनकी प्यास बुझी
गर्मियाँ आराम का मौसम है,
कहते वो जिनके पास है आराम सभी।