इन दिनों
इन दिनों
अंगारे सब राख हुए
पत्र विहीन साख हुए,
जीवन अब निर्भीक कहां
पत्रकार गुस्ताख हुए ।।
दर्द बहुत पर आह नही
दिखती कोई राह नही,
हम मजदूर विवश हैं बस
क्यों किसी को परवाह नहीं।।
अन्न नही है भरपूर भूख
मन्द हुआ आंखों का नूर ,
किस को दिल का दर्द कहें
सब अपनी मस्ती में चूर।।
दिल का अब टूटा विश्वास
जो होता ईश्वर ही काश,
तनिक अगर करुणा होती
ना होता यूं गरीब का नाश।।