आज का दौर
आज का दौर
कुछ करने का जज्बा घटता जा रहा है
वक़्त रेत माफिक,फिसलता जा रहा है।
राजनीति में जो घुसा हो गये पौ बारह उसके
बैंक बैलेंस प्रतिदिन, बढ़ता जा रहा है।
जाने कौनसी क्रीम ये नेता लोग लगाते
रंग रूप प्रतिदिन,निखरता जा रहा है।
आज़ादी की असली मज़ा हमीं रहे लूट
जिसके है जो मुंह में, बोलता जा रहा है।
जाने क्या है होने वाला, भविष्य में आगे
माहौल दुनिया का, बदलता जा रहा है।
क्यों कर बैठते हैं किसान भाई आत्महत्या
भाव फसलों का तो उछलता जा रहा है।
इधर कानून में सजाएँ सख्त की जा रही हैं
उधर अपराधों का ग्राफ चढ़ता जा रहा है।
निस्संदेह इंसान ने विकास तो खूब किया
पर इंसानियत के क्षेत्र में पिछड़ता जा रहा है।
दुनिया बन गई बाहुबली दबंगों की रियासत
शरीफ व्यक्ति तो अपनी खोह में, दुबकता जा रहा है।
मासिक किस्तें भरने में बीतने लगी जिंदगी
क़र्ज़ के जाल में इंसान यूँ,फंसता जा रहा है।
कर्म कर और चढ़ जा सफलता की सीढ़ियाँ
ईर्ष्या की आग में क्यों तू जलता जा रहा है।
कुदरत ने तो जो करना है करेगी ही एक दिन "हैन्सी"
इंसां ख़ुद प्रलय का सामान जुटाता जा रहा है।
