इल्तिज़ा
इल्तिज़ा
हम भूल जाया करते हैं अकसर खुद की बंदिशों की डोरियां,
थोड़ी सी खुशियों के लिए अपनों से बना बना लेते है दूरियां।
ख़्वाहिशों ने आवाज़ दी ही थी हम अपनों से खेलने लगे थे,
इतनी भी समझ न थी गलत राहों पर चलने लगे थे।
अफ़सोस हो जाया करता है उन्ही बातो को याद करके,
धोखा दिया करते थे अपनों के रिश्तों को तोड़ के।
रफ्ता रफ्ता टूटे हुए रिश्तों को अब जोड़ना है मुझे,
बस इतनी सी है इल्तिज़ा कि वो माफ़ कर दें मुझे।
