सब्र
सब्र
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रूठी हुई शामे हैं सवेरा भी अँधेरे सा
ख्वाहिशें हैं अधूरे और सपना लगे पूरा सा,
उम्मीदें बाँधे बैठे हैं कोई रोशनी तो आए खुशियों की
तरस गई है आँखें जो देखें जश्न कामयाबी की,
चलो करते हैं आगाज एक नई लड़ाई का
खुद के हालातों को हरा कर पाना हैं मुकाम मंजिल का,
कदम बढ़ाया पहला मैंने अपने इरादे मजबूत करने का
अब डर नहीं लगता गिरने से हौसला आ गया है फिर से उठने का,
हाथ पर हाथ रख कर नहीं होता फैसला जिंदगी का
सब्र करना होता हैं जब तक वक्त नहीं आया होता आप का।
