जुर्म
जुर्म
लिखेंगे जुर्म हर पन्नों पर
लेकिन वो कोई किताब न होगी,
रुक जायेंगे कलम हमारे पर
उसकी कोई हिसाब न होगी,
बदल जायेंगे जज़्बात हमारे
लेकिन वो हकीकत आज भी रहगी,
बेटियां महफूज नहीं है
कहीं ये बाते हमेशा याद रहगी,
बहुत होंगे चौकीदार यहां
वो बस कहने की एक बात होगी,
आवाज़ उठाना चाहेंगे अगर
लेकिन उसके लिए ज़ुबां न होगी,
सच लिखे हुए होंगे हर जगह
मगर पढ़ने की सब में तौफीक न होगी।