हवस
हवस
माँ कहती थी हमेशा शॉर्टकट से न जाना
उस दिन हो गयी कोचिंग के लिए देर
जल्दबाज़ी में उनकी परी ने
वही शॉर्टकट अपनाया
पहुँची थी वो दूसरी गली तक
तब उसे दिखा सामने से आता बाज
बढ़ती रही फिर भी वह आगे बनकर उस से अनजान
पर उस राक्षस ने तो दिखाया, अपने अंदर का शैतान
झपटा वो उसके वक्षों पर ऐसे ,जैसे भूखा था कब से
किसी लड़की की नोच खाने को जान
लड़की भी सहमी थोड़ी पर, उसके अंतर्मन ने उसे जगाया
अपशब्द बोल, दिखा आँखें, उसने राक्षस को ललकारा
हिल गया उसका दुपहिया वाहन
थोड़ा वो भी डगमगाया
पर फिर वो लौट के वापस,
लड़की का मुँह बंद कराने आया
लड़की दौड़ के पहुँच चुकी थी
तब तक गली के दूसरे छोर पर
सहमी हुई फिर भी उसने हिम्मत दिखा
इकट्ठे किये कई पत्थर
बाज उड़ के आ रहा था
लड़की ने फेंके उस पर कंकड़
चिल्लाने लगी वो शोर मचाने लगी
उल्टा भागा वो बाज जो दिखा रहा था अपनी अकड़
सहमी लड़की सोच रही थी
उसने तो पूरे तन को ढका था
हाथ दस्तानों, मुँह को गर्मी की वजह दुपट्टे से बांधा हुआ था
फिर उस बाज को उसमें ऐसा क्या दिख गया था
माँ ने उसको समझाया बेटा
ये हैवानियत और हवस
कभी शरीर के कपड़े
मुँह देख कर नहीं आती
जब तक स्वयं लड़की हिम्मत से उसको जवाब नहीं देगी
तब तक उसका कोई नहीं होता है साथी
तू बहादुर लाडो है जिसने स्वयं उस राक्षस को सबक़ सिखाया
और दूसरों को भी ऐसे राक्षसों से लड़ने का साहस दिखाया
यह कविता सच्ची घटना पर आधारित है।
