हत्यारे
हत्यारे
ओ हत्यारे!
तू क्यूँ किसी की
हत्या करता है?
क्या तेरी रुह नहीं काँपती
किसी का करुण क्रन्दन
तुझे सुनाई नहीं पड़ता
क्यों किसी को विधवा, अनाथ
बनाता है
ओ हत्यारे!
तू कौन है?
उनका विनाश करने वाला
उनका भाग्य निर्धारित
करके
उन्हें मृत्यु द्वार के
परे करता है।
क्यों तेरे हाथों में कम्पन
नहीं होता है।
ओ हत्यारे!
तू चेतना शून्य
भाव शून्य क्यों
हो जाता है?
क्या हो अगर कभी
जो तेरे किसी
अपने की
हत्या हो?
तब भी क्या तेरा
हृदय
व्यथित नहीं होगा।
पालित के नैनों
का नीर क्यों
तेरा तन-मन
नहीं भिगोता है।
ओ हत्यारे!
छोड़ दे सबको व्यथित करना
सबका श्राप लेना
नहीं तो
उनकी आह
जला देगी तुझ को।।
अगर
तुझे हत्या करनी है
तो,
किसी के दर्द की हत्या कर
किसी के अश्रु की कर।
हाँ तू कर हत्या
किसी के पाप की कर
किसी की खामोशी की कर।
किसी के एकांत की कर।
ओ हत्यारे!
हाँ तू कर हत्या
किसी अहंकार की कर।
फिर देख
तेरी आत्मा कैसे तृप्ति
मिलती है।।
