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अमित प्रेमशंकर

Romance

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अमित प्रेमशंकर

Romance

हटिया टू मुम्बई

हटिया टू मुम्बई

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ठीक सामने बैठी थी वो

जाने क्यों मुस्काती थी

कभी कुरकुरे कभी चिप्स तो

च्विंगम कभी चबाती थी

बालों को वो खोल कभी

यूं हाथों से लहराती थी

कभी आंख से आंख मिलाकर

खिड़की पे सो जाती थी

फिर खिड़की से उठकर पगली

बेचैन सी होती थी।।

तिरछी नजर से देख मुझे वो

मंद मंद मुस्काती थी

थैले से निकाल फोन में

फेसबुक कभी चलाती थी

कभी फोन को, कभी मुझे

वो देख देख मुस्काती थी

नाक की नथुनी गज़ब की थी

चेहरे से मासुम लगती थी

सच में जान निकल जाती थी

जब जब वो मुस्काती थी

         


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