होली
होली
रंगों का यह महोत्सव,
जो वार्षिक रूप से मनाते है।
संपूर्ण देश में हर्ष की लहर छा जाती है,
यह तो रंगीली होली ही है
परंतु यह तो एक दिन के लिए ही खेलते है।
एक और होली है,
जो हम प्रतिदिन खेलते है।
यह होली है-
हमारे भावों की और भिन्न चीज़ों की!
कभी खेलते हुऐ लाल रंग से,
तो चहरा टमाटर बन जाता है,
क्या कहते है पता ही नहीं,
जी हाँ, 'गुस्सा' है यही।
कभी खेले हरे रंग से,
तो मज़े से काम करते हैं,
मन लगता है हर चीज़ में,
यह तो है, 'जोशीला' भाव।
कभी खेले गुलाबी रंग से,
मुख पर वह मुस्कान रहती है,
सब कुछ अच्छा ही होता है,
तभी तो, 'खुश' होते हैं।
कभी काले रंग से खेले,
कई चीज़ों से भय लगता है,
भले ही हौसला जुटा ले,
'खौफ़' तो रहता है।
कभी नारंगी रंग से धूम मचाते है,
पुस्तकों को मित्र बनाते है,
अज्ञान-रूपी अंधकार को,
'ज्ञान'-रूपी उजाले से भर देते है।
और वह सफ़ेद रंग,
अपने संस्कार स्मरण करवाता है,
अपने शब्दों पर नियंत्रण करना सिखलाता है,
'विनम्रता' का भाव दर्शाता है।
और नीले रंग से खेले जब,
जो 'जल' एवं 'आकाश' को दर्शाए,
उस खुले आकाश में उड़ना सिखाए,
कहे, इस कीमती जल का उचित उपयोग किया जाए।
और मटमैला रंग जब हाथों में आए,
इस पवित्र 'मिट्टी' का महत्त्व बताए,
हमें जोड़े रखे अपनी जड़ों से,
उस माता से, जिसे हम मातृभूमि कहते है।
यह होली तो प्रत्येक, प्रतिदिन खेलता है,
इसलिए इसे छोड़,
हम चले उसे खेलने,
जो केवल एक बार आती है,
हाँ, हाँ रंगों की होली,
जो हमारा दिल लुभाती है।