होली की छुट्टी
होली की छुट्टी
सजना दे दो छुट्टी की अर्ज़ी
अब न चलेगी बेबसी की मर्ज़ी
ना दे छुट्टी मालिक तो बात कराना मेरे से
माँग लूँगी तेरा साथ मालपुए की चाशनी से
बात करेगा जलेबी सा,भांग ज़रा पिला देना
पिछले साल की गुझिया का याद उसे दिला देना
आना जब, संग लाना नथुनी मेरी सोने की
टूट गई है झुलनी नथ कि
जो थी लाल मोतियन की।
बच्चों के लिए लाना पिचकारी
जिसमें निकले ख़ुशी सतरंगी रंगों की
तुम बिन सब कुछ सूना -सूना
हाल कहूँ किसे दिल की।
बुझी बुझी सी रहती हूँ,
सहती माँ जी की घुड़की
छाया है चहुँओर फाग राग
बासंती रंग के फूल भरे हैं बाग।
खिले हैं फूल खिले हैं दिल
मेरी आँच कुछ मद्धिम है
आकर तपती रेत को तर कर दो
जीवन में हर रंग रस भर दो
खेलूँगी तुझ संग प्रीत की होली
ना दूर जाने दूँगी एक पल को।
तू ही मेरे गाल के गुलाब
तू ही मेरे सुहाग की लाली
तूझसे ही अधर रसीले
तुझसे ही पायल सुरीली।
यौवन मेरा लबरेज़ फलों से
आकर तृप्त कर लो मन को
सजनी की कोरी चुनरी
पर रंगों की कूँची फेरो
अबीर गुलाल पीस कर फूलों से
रंग घोंटा है प्यार के चूल्हों से।
बैरन रैना कटे नहीं
सेज में लगी है अगन
यादों में मदहोश
तेरी वो अतरंगी छूअन।
रंग बिरंगी होली में फ़िज़ा
में भंग तैर रही
कान्हा ठंडाई की
नशा से तर कर दो
भीगों कर तन मन को
आओ गागर भर दो
आकर वृंदावन में
माधुरी रस घोलो।
सजना दे दो छुट्टी की अर्ज़ी
अब न चलेगी बेबसी की मर्ज़ी
मत कर मत कर ख़ुदगर्ज़ी
रंग दो हर रंग में
स्वीकार करो सजनी की अर्ज़ी।

