हमसफ़र
हमसफ़र
वफ़ा की बूंदें गिरने लगी है मुझ पर,
देखता हूँ कि अब असर कब तक रहता है,
और ठहर जाएगा सैलाब मेरी चाहतों का,
देखता हूँ कि अब मुकम्मल सफ़र कब तक रहता है।
दहकते शोलों को भी अब थोड़ा सुकून आया है,
लौटकर फिर वही मेरा जुनून आया है,
गफलतों की हसरतों से निकलना मुश्किल ही था,
उसके रूबरू आ जाने से दिल अब मेरा मचलता रहता है।
खुशनुमा मौसम की रंगीन बहार आई है,
गड़गड़ाते बादलों से बहती शरार आई है,
थी जुस्तजू सदा मेरे तसव्वुर में जिसकी,
खातिर उसके फिज़ाओं में भी दिल तड़पता रहता है।
होने से उसके बेशुमार खुशी मिलती है मुझे,
ना होने पर गम का खुमार भी छाता है,
आने से दीप जल जाते है मोहब्बत के,
न जाने क्यों वह मेरे दिल के चिरागों में धड़कता रहता है।