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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

हमराज

हमराज

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जिंदगी में कितने हमसफर बनते रहे

सिवाय उनके जो कभी हमराज रहे ।

जुदा हुआ जबसे वो ललित सुमन

शब्दों से ही सजाता रहा मनेचमन ।

दिया है दिल का तोहफा अपना जानकर

हो सके -हो सके अगर रखना संभालकर ।

चूमा है पलकों के अधर से तेरे रुखसार को

तुम माफ करना इस खुबसूरत गुनाह को ।

दर्द भरे लम्हो की अचूक दवा बन जाएगी

तेरी चंचल यादे जब आकर गुगुदाएगी ।

याद तुझे जब सताए बंद होठों से गुनगुनाना

सोचकर,छेडा है किसी ने मिलन का तराना ।

अब डर नहीं जमाना सुनेगा दिल का राज

कल जब चले जावोगे किसे दूँगा आवाज ।।



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