हमराज
हमराज
जिंदगी में कितने हमसफर बनते रहे
सिवाय उनके जो कभी हमराज रहे ।
जुदा हुआ जबसे वो ललित सुमन
शब्दों से ही सजाता रहा मनेचमन ।
दिया है दिल का तोहफा अपना जानकर
हो सके -हो सके अगर रखना संभालकर ।
चूमा है पलकों के अधर से तेरे रुखसार को
तुम माफ करना इस खुबसूरत गुनाह को ।
दर्द भरे लम्हो की अचूक दवा बन जाएगी
तेरी चंचल यादे जब आकर गुगुदाएगी ।
याद तुझे जब सताए बंद होठों से गुनगुनाना
सोचकर,छेडा है किसी ने मिलन का तराना ।
अब डर नहीं जमाना सुनेगा दिल का राज
कल जब चले जावोगे किसे दूँगा आवाज ।।