हम सुनेंगे तुमको
हम सुनेंगे तुमको


तिश्नगी मेरी जाहिर थी जिस पर,
उस बरसात ने रेगिस्तान में रुला दिया मुझको।
कौन सुनेगा मेरी घुटी आवाज को,
मेरे हादसों ने ख़ुद ही जज्ब कर लिया मुझको।
क्यों उसे हो मुझे कफ़न देने का हक,
जिसने चाक दामन भी दागदार दिया मुझको।
वस्ल की बात थी बस कुछ और नहीं,
रुखसती पर न मिलने का वास्ता दिया मुझको।
तुम अपनी कहना हम सुनेंगे तुमको,
बेगानो से सिलसिलों ने दर्द नहीं दिया मुझको।