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Kundan Kumar Singh

Abstract

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Kundan Kumar Singh

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हिया जुड़ाइल बा

हिया जुड़ाइल बा

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नाइकी के देखते देखत , पुरनकी के इयाद आइल बा

ई चोख चकोर चेहरा के पीछे, हमर दिमाग चकराईल बा

खुबे मज़ा ब देखे सुने में, अबके बात समझ मे आइल बा 

की आपन जब से अइली, तब से हिया जुड़ाइल बा।।


साढू, साली के फेरा में, जल्दी सांझ नियराइल बा

बियाहे के बात बतियावे में , हमर रात पीटाइल बा

पुश के पाला का होला, अबकी कहाँ बुझाईल बा

की आपन जब से अइली, तब से हिया जुड़ाइल बा।।


इनकर नजर के गंगा से, हमर सपना धोआइल बा

नइहर जाइ के धमकी से, हमर रोआं कपकपाईल बा

बबुआ बबी के आसरा में, घरे सभे कोहनाईल बा

की आपन जब से अइली, तब से हिया जुड़ाइल बा।।


खुबे प्यार बा इनका से, अब बस इहे दुहाई बा

सटे देस तनी अपना में, तबे नु मांग बहोराईल बा

ज़िनिगिया के हर मोड़ पर, हमरे कान्हा भेटाईल बा

की आपन जब से अइली, तब से हिया जुड़ाइल बा।।


साचो आपन आपने होला, अबके ई बुझेइल बा

मेहरी के मज़ा बहरी में, केहू के ना नु भेटाइल बा

तन मन जहाँ एक रहे,अइसन इहे रिस्ता कहाइल बा

की आपन जब से अइली, तब से हिया जुड़ाइल बा।।



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