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Kundan Kumar Singh

Abstract

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Kundan Kumar Singh

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आँखों ने सब कुछ कह डाली है

आँखों ने सब कुछ कह डाली है

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तेरी आँखों की एक बात निराली है,

समुंदर को भी ये चुनौती दे डाली है।

जुबान से तो कुछ कहती नही हो,

पर आंखो ने सबकुछ कह डाली है।


प्यार है तो आके इज़हार करो,

क्यों कहती हो कि मुझपे नजर नही डाली है।

हम भी दीवाने है ये हँसी,

तेरे आंखों में ही सबकुछ पढ़ डाली है।


जुबान से तो कुछ कहती नहीं हो,

पर आँखों ने सबकुछ कह डाली है।

तुमसे बात करके जी नहीं भरता,

और कहती हो कि चलो अभी कुछ काम बाकी है।


हमे ना सिखाओ ये मेहकसी,

तुम्हारी लड़खड़ाती जुबान ने सबकुछ कह डाली है।

जुबान से तो कुछ कहती नहीं हो,

पर आँखों ने सबकुछ कह डाली है।


मोह्हबत करने तो मुझे आता नहीं,

और कहती हो कि मेरा साथ ही काफी है।

पर जब खुद से तुम्हें बात हो जाये,

तो पूछना क्या धड़कने भी हमने चुरा ली है।


जुबान से तो कुछ कहती नहीं हो,

पर आंखों ने सब कुछ कह डाली है।

तुम्हें रखा हूँ पलको पे बिठा के,

और कहती हो कि अभी इंतज़ार करवानी है।


क्या कसूर है मेरे इस भोले दिल का,

जरा पूछना अपने दिल से की

क्या उसे किसी और दिल की तलाश बाकी है।

जुबान से तो कुछ कहती नहीं हो,

पर आँखों ने सबकुछ कह डाली है।


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