हिसाब
हिसाब
खुद को कफ़न में
लिपटा सा पाया...
बैठा जब
हिसाब रिश्तों का लेकर...
राख भी हिस्से ना आई
मेरी मिट्टी देकर...!
खुद को कफ़न में
लिपटा सा पाया...
बैठा जब
हिसाब रिश्तों का लेकर...
राख भी हिस्से ना आई
मेरी मिट्टी देकर...!