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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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हिंदी

हिंदी

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भाषा का भाषा से 

 नहीं कोई बैर।

 हिंदी के लिए 

  नहीं कोई गैर।

  समुद्र-सी अथाह है।

   कई शब्दों का इसमें प्रवाह है।

   भाषा ज्ञान व्याकरण में

    हिंदी का अलग प्रभाव है।

    हिंदी बने राष्ट्रभाषा

     यही सब का भाव है।


बहती हवाएं।

 महकती फिजाएं।

 चहकती चिड़ियाएं।

एक ही सुर जगा रही।

 हिंदी बने राष्ट्रभाषा।

 संदेश यह फैला रही।

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हिंदी समृद्ध है।

 सक्षम, सार्थक, समर्थ है ।

दासता के चिन्हों का लेकिन

 अब तलक अस्तित्व है। खिड़कियां खुल चुकी।

 दरवाजे भी हैं खुलने लगे।

 हिंदी बने राष्ट्रभाषा

 स्वर ये गूंजने लगे।


 दासता के बादलों के

 झुंड देखो छटने लगे।

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हम श्रेष्ठ हैं।

 श्रेष्ठता ही स्वीकार्य है।

 हिंदी शिरोधार्य है।


 जब-जब शंखनाद हुआ।

व्यवधानों का अंत हुआ।

 हिंदी बने राष्ट्रभाषा।

 यह ऐलान सरेआम हुआ।

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भावना, संस्कृति, परंपराओं की वाहक।

संवाद सेतु हिंदी है।

राष्ट्रभाषा की अधिकारी।

राजभाषा हिंदी है।

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राष्ट्रभाषा का अभाव खलता है।

   गुलामी का चिन्ह दिखता है।

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जब जब शंख नाद  हुआ।

 परिवर्तन का ज्ञान हुआ।

हिंदी बने राष्ट्र-भाषा ।

 हिंदी का महत्व सरेआम हुआ।

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मन का मर्म हिंदी बताती है।

 अतीत का गौरव कहानियों में सुनाती है।

हिंदी का पर्याय हिंदी ही।

 मन की शुद्धि, पूजा की शक्ति, भक्ति हिंदी ही।

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सही सोच का परिणाम सही।

 हिंदी बने राष्ट्रभाषा।

सब कह रहे यही ।


अतीत का गौरव

 वर्तमान का अभिमान है।

 हिंदी हमारा स्वाभिमान है।


 हिंदी का भला कौन सानी है।

 हिंदी कहती सफलता की कहानी है।

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