हिन्दी की दशा
हिन्दी की दशा
हे हिन्दी तुम जूझ रही हो,
अब भी सम्मान पाने को,
जाने क्यों तैयार नहीं हैं,
अपनी भाषा अपनाने को।
जब से हुआ आजाद देश,
तब से जगी उम्मीद रही,
सबके जुबान पर रहकर भी,
नेताओं की लगी नींद रही।
संविधान में तरस रही तुम,
प्रथम भाषा के रूप को,
जाने कब से पाना चाहती,
अपने असली स्वरूप को।
कोई नहीं जो सीना ठोक,
तुमको तुम्हारा दर्जा दे,
कर कुछ राजा रहा नहीं,
फिर कर कैसे कुछ प्रजा ले।
शायद सफल तुम्हारा कर्म हो,
बन जाओ चमकती बिन्दी,
देश के हर कोने कस्बे में,
बच्चा बच्चा बोले हिन्दी।।