हिंदी दिवस-एक संकल्प
हिंदी दिवस-एक संकल्प
बड़ी पुत्री है संस्कृत की सरल भाषा तथा बोली।
निरंतर सीखती रहती सभी से बन के हमजोली॥
समाहित शब्द अरबी फ़ारसी लैटिन व अंग्रेज़ी।
चहेती है करोड़ों की ज़रा अल्हड़ ज़रा क्रेज़ी॥
अनेकों रूप लेकर भी बड़ी मीठी है अलबेली।
भले अवधी या ब्रजभाषा खड़ी बोली या बुन्देली॥
ये जयशंकर महादेवी निराला जी की कविता है।
मधुर मोहक सरस सुन्दर चपल चंचल सी सरिता है॥
ये मीरा सूर तुलसीदास बिहारी जी की भक्ति है।
प्रतापी राजपूताना महाराणा की शक्ति है॥
सजी भारत के मस्तक पर चमकती बन के बिंदी है।
ये हिंदुस्तान की है जान हमारी शान हिंदी है॥
कि सत्तर फीसदी जनता यही भाषा समझती है।
मगर अवहेलना फिर भी इसी की क्यों वो करती है॥
अधिकतर लोग अंग्रेज़ी न समझे हैं न बोले हैं।
मगर अवसर के दरवाजे उसी भाषा ने खोले हैं॥
जो अंग्रेजी के भारी शब्द नहीं हमको समझ आये।
कमी मानें खुदी में कुछ नज़र अपनी ही झुक जाए॥
मगर हिंदी के शब्दों का यहाँ परिहास करते हैं।
नहीं लज्जा तनिक आती नहीं अभ्यास करते हैं॥
नहीं संभव है हिंदी में वकालत मेडिकल पढ़ना।
किताबें सिर्फ अंग्रेजी अगर इंजीनियर बनना॥
यहाँ सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी ही चलती है।
वहीं हिंदी किसी कोने में चुप बैठी सिसकती है॥
पढ़ें संवाद अंग्रेजी में हिंदी फिल्म अभिनेता।
न आते भाव अच्छे से न उच्चारण सही देता॥
लगी है दौड़ अंग्रेजी कहीं पीछे न रह जाएँ।
तभी बच्चों को अभिभावक यहाँ हिंदी न सिखलाएँ॥
हैं कुछ स्कूल ऐसे भी जहाँ हिंदी पे बंधन है।
अगर हिंदी जरा बोली सजा मिलती भी फ़ौरन है॥
जो बच्चे दोस्तों के साथ बतियाते नहीं थकते।
मिलें दादी या नानी से तो बातें कर नहीं सकते॥
हमारे देश में खुल कर के हिंदी यूज़ कब होगी।
ग़ुलामी मानसिकता की ये बेड़ी लूज़ कब होगी॥
न हिंदी सिर्फ़ भाषा है, ये है पहचान भारत की।
हमें सम्पूर्ण करती है, ये देवी है इबादत की॥
तिरस्कृत हो रही हिंदी बड़ी व्यापक समस्या है।
बने हिंदी अधिक विस्तृत ये सामूहिक तपस्या है॥
हमें सर्वोच्च दुनिया में अगर भारत बनाना है।
तो सोतों को जगाना है व हिंदी को बढ़ाना है॥
चलो हिंदी दिवस पर सब प्रतिज्ञा आज करते हैं।
कि भारत देश उपवन में छटा हिंदी की भरते हैं॥