हिम्मत का शस्त्र
हिम्मत का शस्त्र
एक नन्ही परी इस दुनिया में आती है
नए सपनो की तीव्रता संजोती है
पर क्या पता था उसे की
पर काटने को अन्य लोग
आँख लगाए बैठे है।
कहती है वो
" पर काट दो मगर
दौड़ना नहीं छोड़ूंगी
हाथ लगाकर तो देखो
कलाइयाँ मरोड़ दूंगी "
अहंकार नहीं है मेरा ये
पर दृढ़ निश्चय है मेरा ,
हाथ के कंगन बनेंगी मेरी ढाल
पैर की बेड़िया हिम्मत बनेंगी मेरी
पल्लू जो बने इज़्ज़त इस देश में
बनेगी गले का फंदा
उस हर समाज की
जो रोक दे कदम हमारे
आगे तो बढ़ कर रहूंगी मैं
कल्पना में भी हाँथ न आउंगी तम्हारे
पर काट ही क्यूँ न दो हमारे
पाओं से आखिरी सांस तक दौड़ूंगी
बिना किसी के सहारे।