हे खग...!
हे खग...!
हे खग..!
क्या सराहना करूँ तेरे भाग्य की..?
धन्य धन्य है तू ,
तूने रघुवर के हाथ से छीन रोटी खाया..!
जाने क्या समझकर
जगत जननी माँ सीता के पाँव पर
अपने ठोर से घाव लगाया..!
आदेश पाकर जगतपति के
गरुड़ का अभिमान मिटाया...!
निरंतर जपकर नाम रघुवर का
खगकुल का भी मान बढ़ाया...!!
